...वाह नेगी जी क्या गजब मारा है। इस गीत को कई बार सुन चुका हूं। जब भी सुनता, दूसरों से शेयर करने का मन करता। जो लोग गढ़वाली-कुमाऊंनी नहीं समझते उन्हें बता दूं की गीत चुनावी माहौल पर है। आप इसे उत्तराखंड की 'भूत जोलोकिया' मिर्ची भी कह सकते हैं। इकदम हॉट। हमारे नेताओं के मुंह तो अभी तक शीशीशी.. करते हैं इसे सुनकर। आज जैसे-तैसे इसे यू ट्यूब से फटाफट टेपा और चट से हिंदी में बदल डाला (नेगी जी ऊंच-नीच हो गई हो तो माफी) । भला ऐसी चीजों में भाषा-बोली की बंदिश क्यों हो भला। ...तो गीत कुछ इस तरह से है। (आप इसे यू ट्यूब पर भी सुन सकते हैं)
'हाथ' ने विस्की पिलाई...'फूल' ने पिलाई रम
छोटे दलों-निर्दलीयों ने कच्ची में टरकाया हम
इस चुनाव में मजे ही मजे... दारू भी, रुपये भी... ठम ठम
सुबह के पैग में घड़ी के साथ, दिन के पैग में साइकल पर चढ़े
शाम को कुर्सी में लम-तम लेटे और रात को हाथी में तड़ी से तने
इस चुनाव में ठाठ ही ठाठ...प्रत्याशी पैदल और घोड़े में हम
आज इधर कल उधर, नेताओं ने पल-पल बदले दल
अब हमारी शराब का ब्रांड भी बदला, कभी सोड़ा तो कभी कोक....
इस चुनाव में ऐश ही ऐश... कच्ची भी और रम भी हजम
मुर्गों की टांगें हैं, बकरों के रान है...
जियो मेरे लोकतंत्र... तेरे प्रताप से ही आज गरीबों की शान है
पहले पता नहीं था, लेकिन अब पता चल गया है...
...कि वोट की चोट में किता है दम
'हाथ' ने विस्की पिलाई...'फूल' ने पिलाई रम
छोटे दलों-निर्दलीयों ने कच्ची में टरकाया हम
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10 comments:
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
सुनकर और मजा आ गया..
मजेदार।
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