Wednesday, May 13, 2009

कैसी हो टिहरी?

कैसी हो टिहरी?
जब से यह पानी की चादर ओढ़ी है तुमने
कुछ खबर ही नहीं रहती तुम्हारी
अच्छा पहले बताओ क्या अब भी मीठा है तेरे तीन धारे का पानी
नहीं-नहीं अब शायद खारा हो गया होगा वह
तुझे क्या पता बहुत आंसू बहे हैं टिहरी तेरे लिए
हां ज्यादातर आंखें बूढ़ी थीं तो क्या

अच्छा बता क्या पहले जैसी महकती है तेरे मालू के पत्तो में लिपटी सिंगौरी
इस बार तेरी क्लोन नई टिहरी से लाया था दो पैकेट
लेकिन सच बताऊं घर और बाहर के खाने जैसा फर्क था उसमें

अच्छा जरा यह तो बता तेरी भागीरथी के ऊपर बना पुल ठीक तो है ना
बहुत याद आता है वह पुल
बस से गुजरते हुए भागीरथी में गिरते सिक्कों की वह खन-खन
देख तो जरा श्रद्धा के सिक्के कब लालच की पोटली में बदल गए पता ही नहीं चला

अच्छा चनाखेत का चौड़ा सा मैदान कैसा है? घास तो नहीं उगी ना उस पर?
बहुत याद आती है चनाखेत में 15 अगस्त पर बच्चों की वह जोशीली परेड
मैंने यहां दिल्ली में भी देखी हैं कई परेड़ें
लेकिन कई-कई मील चलकर आने वाले बच्चों जैसा वह जोश कहां

अच्छा जरा बाहर झांककर तो देखो तेरी क्लोन नई टिहरी कैसे झक-झक कर रही है
...और पगली एक तुम थी बिल्कुल सीधी-सादी
न कोई मेकअप न कोई चमक-दमक
इसीलिए डूब गई तुम, ऐसे लोगों का यही होता
थोड़ा नीचे जरा दून को तो देख
मजाल है कोई हाथ भर भी लगा दे उस पर