पिछले साल अप्रैल में अपने गांव टिहरी गया था। एक साल हो गया। लेकिन दो तस्वीरें अभी भी आंखों के आगे घूम रही हैं। स्कूल से घर लौटती उस बच्ची की तस्वीर। पीठ पर बस्ते के बोझ से बड़ा था उसके सिर का बोझ। वह गेहूं पिसवा कर घर ले जा रही थी। सड़क से आधा एक किलोमीटर तक उसके गांव का अता पता नहीं था। जाहिर है स्कूल आते वक्त गेहूं को स्कूल के रास्ते में पड़ने वाली चक्की और घराट तक लाई भी होगी वह।
दूसरे तस्वीर कुछ शर्मसार कर देने वाली। जिस जीप से हम जा रहे थे, उसमें कुछ रिटायर्ड फौजी भी थे। कैंटीन से शराब का पूरे महीने का कोटा था उनके पास। गांव से एक किलोमीटर नीचे सड़क पर गाड़ी रुकी। फौजी भाई साहब उतरे। क्या देखता हूं कि उनकी पत्नी और एक 12 से 14 साल की बच्ची वहां खड़ी हैं। बैगपाइपर की पेटी उन्होंने बेटी और बाकी सामान बीवी के सिर पर रखा और सभी गांव की तरफ चल पड़े। कितनी शर्मनाक तस्वीर थी यह। अब तक आंखों के आगे से नहीं जाती।
अपने पहाड़ की बेटियों की नियति है यह। दिल्ली में जब इस संघर्ष से निकलकर यहां एसी में पली-बढ़ी लड़कियों के साथ उनको कदम से कदम मिलाते देखता हूं तो बड़ा गर्व होता है उन पर।
मेरे पहाड़ की बेटियो
क्या हुआ उनके बस्ते से कई गुना भारी है तुम्हारे सर का बोझ
क्या हुआ एक बहुत बड़ी खाई है तुम्हारी और उनकी पढ़ाई में
जिस तरह रोज ही लांघती हो तुम पहाड़ों की हंसते-हंसते
मुझे यकीन है उसी तरह इस खाई को एक छलांग में पाट दोगी
और चलोगी यहां राजपथ पर अपनी दूसरी बहनों की तरहे सीना ताने
10 comments:
bahut hi acchi post
दिल को छू लेने वाली बातें...बेटियां ऐसी ही होती हैं ना...
संघर्ष आदमी को मजबूत बनाता ही है। संघर्ष करके आगे बढ़ने वाली लड़कियां समाज में समानता लाती हैं और संवेदनशीलता में इजाफा करती हैं। पहाड़ की लड़कियां...कस्बे की लड़कियां...आगे बढ़ें और बढ़ती रहें।
आपका ब्लॉग सुन्दर है ..नाम भी आपने चुनकर रखा है ..आशा है यहाँ चुनिन्दा चीजें पढ़ने/देखने को मिलेंगी
bahut sundar
bandhai aap ko is ke liye
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
आपके दोनों उदाहरनो से एक बात सपष्ट है..बेटियां पहले अपने पिता का और बाद में पति के घर का हर काम खुद संभाल लेती है!बस यही बात उन्हें बेटों से ,अलग करती है!बेटे जहाँ मौका मिलते ही माँ बाप को भूल जाते है वँही बेटियां मरते दम तक उनके संपर्क में बनी रहती है!फिर भी बदले में उन्हें क्या मिलता है..उपेक्षा और तिरस्कार!!हम चाहें तो ये सूरत बदल भी सकती है...
Saarthakpurn aalkeh ke liye dhanyvaad....
aapne gaon kee jo bidambana hai uska bakhubi varnana kiya hai... bahut dukh hota hai jab hamare aadarniya kahlane wale bade log sharab jaisi dogle chees ke liye mare jaate hai????
...Aapka pryas bahut achha laga... esi tarah logon ko jagruk karne ke sakht jarurat hai....
aaj man keri ki chala, garwali type keri ki search karo, yein site dekeki khushi huai ,weise bhi jyada, apni sanskriti ki bara ma itkha achcha vichar dekheki man prasan huai gyai.
Great job done keep it up
Dhiraj Gosain
very nice n really true...
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