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म्यार मुलुक मनख्यूं का अकाल
रीति इगास (खाली इगास)
फीकि बग्वाल (फीकी दीवाली)
हर्चे रंग (खोए रंग)
छुटे अंग्वाल (छूटे हाथ)
कैकि खुद (किसी की याद)
कैकि जग्वाल (किसी का इंतजार)
म्यार मुलुक (मेरे मुल्क)
मनख्यूं का अकाल (मनुष्यों का अकाल)
गिरीश सुंदरियाल
5 comments:
भाँ जी, आपके लिखे हुए शब्द पढॆ तो लगा मैं गाँव पहुच गया और सारा बच्पन याद आ गया । आपका प्रयतन सराहनीय है ।
पूरन चन्द्र डबराल
pcdabral@gmail.com
चित्र ने मन मोह लिया ,हालांकि भाषा सिवाय कैकी, फीकी व रीती के नहीं समझ आई ।
घुघूती बासूती
भेजी 'इगास' माने क्या वंदू?
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तेरी खुद, तेरी जग्वाल। कख छै तू गिरीश सुंदरियाल। ब्लाग में देखकर अच्छा लगा।
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