
नरेंद्र सिंह नेगी ने 1994 में उत्तरकाशी में जब यह पंक्तियां लिखीं, तब सामने अलग राज्य का संघर्ष था। आज अलग राज्य तो है, लेकिन आम आदमी का संघर्ष वही है। ऐसे में उनका यह गीत आज मुझ जैसे न जाने कितने लोगों को संबल देता है।
द्वी दिनू की हौरि छ अब खैरि मुट्ट बोटीकि रख
तेरि हिकमत आजमाणू बैरि
मुट्ट बोटीक रख।
घणा डाळों बीच छिर्की आलु ये मुल्क बी
सेक्कि पाळै द्वी घड़ी छि हौरि,
मुट्ट बोटीक रख
सच्चू छै तू सच्चु तेरू ब्रह्म लड़ै सच्ची तेरी
झूठा द्यब्तौकि किलकार्यूंन ना डैरि
मुट्ट बोटीक रख।
हर्चणा छन गौं-मुठ्यार रीत-रिवाज बोलि भासा
यू बचाण ही पछ्याण अब तेरि
मुट्ट बोटीक रख।
सन् इक्यावन बिचि ठगौणा छिन ये त्वे सुपिन्या दिखैकी
ऐंसू भी आला चुनौमा फेरि
मुट्ट बोटीक रख।
गर्जणा बादल चमकणी चाल बर्खा हवेकि राली
ह्वेकि राली डांड़ि-कांठी हैरि
मुट्ट बोटीक रख।
नरेंद्र सिंह नेगी
13 comments:
waah taaz waah !! are kuch hindutv ke talibaniyon ka bhi tabla bajao
स्वागत है राकेश परमार जी;
नजीर साहब वाकई बेनजीर हैं. मैंने भी आगरे में अपने बचपन के कुछ पल के जिये हैं.
Rakesh, swagat hai aapka, mai aapke chithe ka naam dekh ke hi samajh gaya tha ki aap uttaranchal se honge.
बंधु स्वागत है आपका.. मगर अपने चिट्ठे के नाम का राज़ खोलिये..
राकेश भाई ,
स्वागत है आपका चिट्ठा जगत में .
अभय जी की जानकारी के लिये बता दूं 'बुरांस' मध्यम ऊँचाई का वृक्ष है. यह हिमालय क्षेत्र से लगभग 1600 मीटर से 3600 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है. इसकी पत्तियाँ मोटी एवं पुष्प घंटी के आकार के लाल रंग के होते हैं. मार्च-अप्रैल में इस वृक्ष में पुष्प खिलते हैं .बुरांस के किले हुए फूल बहुत अच्छे लगते हैं . इसके पुष्प औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं . बुरांस का जूस भी बनाया जाता है जो बहुत ही शीतलता प्रदान करने वाला होता है . बुरांस पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष वृक्ष हैं जिसकी प्रजाति (शायद) अन्यत्र नहीं पाई जाती .
राकेश जी के चिट्ठे पर लगा फूल भी बुरांस का फूल ही है.
स्वागत है आपका।
हम भी बुरांश नाम देखकर ही यहॉं पहुँचे। पहाड़ पसंद हैं हमें।
गीत पसंद आया, लिखते रहें।
स्वागत है परमार जी अपनी पहचान अपनी क्षेत्रीयता को जगाये रखने एवं प्रकट करने के लिए
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है।
नारद पर नए चिट्टों की सूची में बुरांश नाम पढ़ते ही मैं समझ गया कि कोई उत्तरांचली बंधु हैं।
नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।
राकेश परमार जी बुरांस शब्द ने ही हमे आप तक पहुचाया है आभारी है आपके
राकेश जी अच्छा लगता है जब अपने लोगों से मिलना व उनके बारे में कहीं कुच्छ पड़ने को मिलता है। आगे भी इसी प्रकार लिखते रहैं। आपका कान्ती बहुगुणा
राकेश भाई,
बुरांस को नेट पर देख अच्छा लगा, बुरांस में जितने लाभकारी गुण होते हैं, उतन ही लाभकारी है आपका चिंतन।
मेरी शुभकमनायें स्वीकारे और लिखते रहें।
आडू, बेडू, घिंघारु।
JYU T BHUNU CHA BURANSA KA PHOOL BANIKI SUWA AAIJA
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